मंगलवार, 17 नवंबर 2009

7 असफलताएँ भारत की जिन पर हमें दुख है

स्वतंत्रता के बासठ साल हो जाने के बाद भी भारत कई क्षेत्रों में नितांत असफल रहा है. यह हमारे लिए चिंता की बात तो है ही, साथ ही सबक ले तो भविष्य का उज्जवल मार्ग भी साफ देख सकते है.

दंगे
धर्म, प्रांत व भाषा के नाम पर भारत भीषण दंगे भोगता रहा है. जन-धन हानी के साथ साथ देश की प्रतिष्ठा भी खंडित होती रही है.

भ्रष्टाचार
महान संस्कृति का दम्भ भरने वाला भारत भ्रष्टाचारी देशों में शामिल होता है. हर चौथे सांसद पर आपराधिक मामले चल रहे है. हर दूसरा भारतीय कभी न कभी घूस जरूर देता है.

गरीबी
120 करोड़ के देश में 27% जनता अभी भी गरीबी रेखा के नीचे जी रही है. अगर अंतरराष्ट्रीय गरीबी रेखा से तुलना करें तो 42% भारतीय गरीबीरेखा के नीचे जी रहे हैं.

न मानने में आए ऐसी बात है कि भारत में 5 करोड़ बाल मजदूर हैं, जो किसी न किसी रूप में मजदूरी कर रहे हैं.

जनसंख्या
अनियंत्रित जनसंख्या देश के संसाधनों पर भारी दबाव बना रही है. प्रकृतिक संसाधनों का अंधाधुंध दोहन पर्यावरण के लिए खतरा बनता जा रहा है. साठ साल में भारत की जनसंख्या चार गुना बढ़ गई है.

लिंग अनुपात में असंतुलन
सामाजिक मान्यताओं के चलते व नवीन संसाधनों की उपलब्धता से कन्याओं को गर्भ में ही मार देने का चलन इस हद तक बढ़ा की लिंग अनुपात ही गड़बड़ा गया है. आज देश के कई क्षेत्रों में 1000 पुरूष के मुकाबले मात्र 800 महिलाएं हैं.



सीमाएं सिकुड़ना
कोई भी राष्ट्र अपनी सीमाओं में सुरक्षित रहता है और इस सीमाओं की रक्षा भी करता है. आज़ादी के बाद भारत की सीमाएं सिकुड़ी है. हमने अपनी जमीन पाकिस्तान व चीन के हाथों गँवाई है.

अंग्रेजी राज
स्वतंत्रता के साथ अंग्रेजी राज खत्म हुआ था, मगर एक विदेशी भाषा ने कहीं अधिक जड़े जमा ली है. भारत अंग्रेजी के स्थान पर अपनी भाषा को स्थापित करने में नाकाम रहा.


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